डिजाइन के सिद्धान्त (Principles of Design)
डिजाइन के सिद्धान्त यह निर्धारित करते हैं कि एक प्रभावशाली सम्प्रेषण के लिये ग्राफिक डिजाइन किस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए। ये सिद्धान्त डिजाइन के सभी तत्त्वों के संयोजन से सम्बन्धित होते हैं और सभी तत्त्वों को एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में व्यवस्थित करते हैं। रॉय पॉल नीलसन (Rauy Paul Nealson) के अनुसार, “डिजाइन के सिद्धान्त डिजाइनर के लिए व्याकरण के नियमों की तरह होते हैं। ये सिद्धान्त प्रभावशाली सम्प्रेषण और आँखों को सुखद (मनोहर) करने के लिए डिजाइन के तत्त्वों के साथ जोड़ते समय दिशानिर्देश उपलब्ध करवाते हैं।"
ओ ग्यून, एलेन सेमेनिक (O Guinn, Allen Semenik) ने सिद्धान्तों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “डिजाइन के प्रयोग/सिद्धान्त यह निमन्त्रित करते हैं कि मुद्रित विज्ञापन कैसे तैयार किया जायेगा। डिजाइन के सिद्धान्तो का सम्बन्ध विज्ञापन के प्रत्येक तत्त्व से होता है और ये सभी तत्त्वों की व्यवस्था एवं सभी तत्त्वों के मध्य सम्पूर्ण रूप से सम्बन्धों को निश्चित करते हैं।" एक अच्छे प्रभावशाली दृश्य संयोजन के लिए उसके तत्त्वों को इस प्रकार स्थापित करना चाहिए कि वे देखने वाले का ध्यानाकर्षण करें अर्थात्सं योजन में रुचि का केन्द्र (Center of Interest) हमेशा होना चाहिए जो सिद्धान्तों के प्रभावी प्रस्तुतीकरण द्वारा ही होता है। ग्राफिक डिजाइन में निम्नलिखित सिद्धान्तों का पालन किया जाना चाहिए:
1. सन्तुलन (Balance)-एक डिजाइन सन्तुलित होना चाहिए।
2. अनुपात (Proportion)–दर्शक को लुभाने के लिए एक डिजाइन के अन्दर अनुपात होना चाहिए।
3. विरोधाभास या महत्त्व देना (Contrast or Emphasis)–डिजाइन के सभी तत्त्वों में से एक तत्त्व को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।
4. दृष्टि संचालन/लय या प्रवाह (Eye Movement/Rhythm)– एक डिजाइन के सभी तत्त्व एक क्रमबद्ध और निर्देशात्मक पैटर्न में होने चाहिए।
5. एकता (Unity)-एक डिजाइन में एकात्मक सामर्थ्य होना चाहिए।
1. सन्तुलन
सन्तुलन प्रकृति का मूलभूत नियम है। सन्तुलन का सिद्धान्त गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त की तरह ही होता है। सन्तुलन वहीं होता है जब एक समान बल या भार की वस्तुएँ किसी एक निर्देशन-बिन्दु से समान दूरी पर हों या हल्की वस्तु भारी वस्तु की अपेक्षा अधिक दूरी पर हो।
डिजाइन में सन्तुलन, प्रस्तुतीकरण की एक उपयुक्तता और व्यवस्थितता है जो दृश्य-भार से सम्बन्धित होता है। डिजाइन के अन्दर एक दृश्य बिन्दु विद्यमान रहता है जहाँ पर हमारी दृष्टि सबसे पहले जाती है। डिजाइन में इसे निर्देशन बिन्दु भी कहा जाता है। यह प्राकृतिक केन्द्र बिन्दु (Physical Center) से लगभग एक तिहाई दूरी पर ऊपर की ओर या डिजाइन के धरातल से दो-तिहाई दूरी पर बायें से दायें के मध्य में स्थित होता है। यह संदर्भबिन्दु होता है जिसके आधार पर डिजाइन में सन्तुलन का निर्धारण किया जाता है। एक डिजाइन में सन्तुलन डिजाइन के तत्त्वों के आकार, स्थान, उनकी रंगत या मान और अन्तराल से लाया जा सकता है क्योंकि डिजाइन के तत्त्वों का दृश्य-भार-आकार तथा रंगों की प्रबलता या तान आदि से प्रभावित होता है। अगर डिजाइन में दो तत्त्वों का आकार और रंगों का मान दोनों एक समान होंगे तो दोनों का दृश्य-भार बराबर होगा और यदि एक तत्त्व के रंगों का मान अधिक होगा तो दूसरे तत्त्व के समान आकार का होते भी उसका भार अधिक होगा। इसी प्रकार एक बड़ा तत्त्व जिसके रंगों का मान कम या हल्की रंगत होगी तथा एक छोटे तत्त्व जिसके रंगों की रंगत अधिक प्रबल होगी तो भी दोनों तत्त्वों के आकार में अन्तर होते हुए भी दोनों का दृश्य-भार समान हो सकता है। डिजाइन में सन्तुलन दायें से बायें होना चाहिए न कि ऊपर से नीचे। सन्तुलन दो प्रकार का होता है:
(i) सम सन्तुलन (Formal Balance)
(ii) विषम सन्तुलन (Informal Balance)
(i) सम सन्तुलन— इस प्रकार के सन्तुलन को सममित (Symmetrical) संतुलन भी कहते हैं। जब किसी डिजाइन को हम सीधी खड़ी रेखा से ऊपर से नीचे तक दो समान भागों, दायें व बायें में बाँटें तो उसमें डिजाइन के तत्त्वों को इस प्रकार रखा जाए कि एक भाग दूसरे भाग की पुनरावृत्ति लगे तो वह सम सन्तुलन या समरूपता का सन्तुलन कहलाता है। इस प्रकार के सन्तुलन वाले डिजाइन में नीरसता होती है। यह स्पष्टता और गंभीरता के भाव का सृजन करता है। ये डिजाइन अधिक प्रभावी नहीं होते हैं इसलिए इस प्रकार के डिजाइनों की संख्या कम ही रहती है। इनका दृश्य प्रस्तुतीकरण सरल होता है।
(ii) विषम सन्तुलन—इस प्रकार के सन्तुलन को अनियमित (Unsymmetrical) सन्तुलन भी कहते हैं। असम-सन्तुलन भाग दूसरे भाग की पुनरावृत्ति नहीं होता है, बल्कि इसमें विविधता (Variety) होती है। डिजाइन में विलक्षण एवं उत्साहवर्धक प्रभाव प्राप्त करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। जब डिजाइन में विषम सन्तुलन बनाते हैं तो दृश्य-बिन्दु के चारों ओर अलग-अलग दूरी पर छोटे-बड़े तत्त्वों को रखते हैं ताकि उनका दृश्य भार समान रह सके। इसमें डिजाइन के तत्त्व इस प्रकार रखे जाने चाहिए कि डिजाइन में सन्तुलन बना रहे। बड़ी आकृति छोटी की अपेक्षा अधिक दृश्य भार वाली और अधिक ध्यानाकर्षण करती है। इसलिये हम दृश्य-बिन्दु के पास एक तरफ अगर बड़ा तत्त्व (आकृति) रखते हैं तो उसके विपरीत दिशा में अधिक दूरी पर छोटा तत्त्व (आकृति) रखा जाना चाहिए या एक बड़े तत्त्व का सन्तुलन बनाने के लिए उसकी विपरीत दिशा में छोटे-छोटे दो या दो से अधिक तत्त्वों को रख कर भी सन्तुलन बनाया जा सकता है। यह सन्तुलन रंगों की प्रबलता या तान, पोत एवं आकृतियों से भी बनाया जा सकता है क्योंकि पोत वाली आकृति की अपेक्षा चिकनी सतह वाली आकृति, रंगीन की अपेक्षा श्याम-श्वेत और अनियमित आकृति से नियमित आकृति का दृश्य भार कम होता है। इसी प्रकार डिजाइन के किनारे पर बनी आकृति का दृश्य भार अधिक होता है। इसलिये डिजाइन के केन्द्र बिन्दु के आस-पास बनायी बड़ी आकृति के भार को सन्तुलित करने के लिये किनारों पर छोटी आकृति बनायी जाती है। जटिल आकृति का दृश्य भार साधारण आकृति से अधिक होता है इसलिये बड़े आकार की साधारण आकृति को छोटे आकार की जटिल आकृति से सन्तुलित किया जा सकता है। इसी प्रकार गर्म रंगों का दृश्य भार ठंडे रंगों की अपेक्षा अधिक होता है। एक बड़ी हरे रंग की आकृति के दृश्य भार को सन्तुलित करने के लिये लाल रंग की छोटी आकृति का प्रयोग किया जा सकता है। गहरे रंग भी हल्के रंगों से अधिक दृश्य भार वाले होते हैं जिनके प्रयोग से डिजाइन में सन्तुलन बनाया जा सकता है। विषम सन्तुलन वाले डिजाइन अधिक प्रभावशाली और आकर्षक होते हैं क्योंकि इनमें नीरसता नहीं होती है। सामान्यतः इसी प्रकार के डिजाइन अधिक बनते हैं किन्तु डिजाइन में इस प्रकार के सन्तुलन को बनाये रखना कठिन होता है इसलिए डिजाइन में विषम सन्तुलन बनाये रखने के लिए अधिक अनुभव और सृजनशक्ति की आवश्यकता होती है।
2. अनुपात
यह भी एक मूलभूत प्राकृतिक सिद्धान्त है जो आकार एवं अनुमाप (Scale) से सम्बन्धित होता है। अनुपात एक वस्तु से दूसरी वस्तु के आकार से सम्बन्धित होता है जो उसके वास्तविक आकार की जानकारी देता है। अनुपात डिजाइन के तत्त्वों का एक दूसरे और सम्पूर्ण डिजाइन से तुलनात्मक या आनुपातिक सम्बन्ध है कि डिजाइन के सभी तत्त्व आनुपातिक रूप से अपने वास्तविक आकार में हैं या नहीं। अच्छे डिजाइन के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। डिजाइन निर्माण में लेआउट (खाका) के क्षेत्र और आयाम का निर्णय बहुत महत्त्व रखता है। इसलिए डिजाइन निर्माण की प्रक्रिया का प्रारम्भ डिजाइन के (आकार के निर्धारण) से किया जाता है कि डिजाइन के तत्त्वों को किस आकार में संयोजित किया जाना है। माप का प्रयोग डिजाइन में आकृतियों के प्रासंगिक या आनुपातिक महत्त्व के विवरण को बनने के लिये भी प्रयुक्त किया जा सकता है। यह डिजाइन की नीरसता को दूर करता है। सर्वप्रथम देखने वाले का ध्यान डिजाइन के आकार पर ही जाता है। आयताकार (Rectangular) आकृति अन्य आकृतियों की अपेक्षा मनोहारी मानी जाती है इसलिए अधिकतर पुस्तकें, पत्रिकाएँ, समाचार-पत्र, लैटर हैड, पोस्टर आदि आयताकार विशिष्टताओं वाले होते हैं। डिजाइन को सामान्यतः: एक आयताकार अन्तराल (Space) में ही ._ बनाया जाता है। प्राचीन ग्रीक में भी आयताकार आकृतियों की चौड़ाई (दायें से बायें) से लम्बाई (ऊपर से नीचे) के 5:8 अनुपात को बहुत मन - भावन माना गया है। इस अनुपात को स्वर्णिम अनुपात (Golden Ratio) कहा जाता था। वर्तमान में प्रकाशनों की आकृति का अनुपात सामान्यतः 2:3 या 5:7 होता है।
एक बार मूलभूत आकार का चुनाव करने के पश्चात् उसमें डिजाइन की रचना प्रारम्भ की जाती है। डिजाइन में अनुपात उसके तत्त्वों के आकार और रंगों की प्रबलता के आधार पर निर्भर करता है। यह सन्तुलन से मिलता- जुलता ही है। डिजाइन में उचित अनुपात के लिए तत्त्वों को उनके महत्त्व के अनुसार ही आवश्यक आकार (छोटा-बड़ा), स्थान और रंगों का चयन किया जाता है। हम वस्तुओं को उनके वास्तविक आकार में देखने के आदी हैं लेकिन जब वस्तु को उसके वास्तविक आकार की अपेक्षा अपरिचित आकार में बनाया जाता है तो वह अनायास ही ध्यानाकर्षण करती है। इसलिये डिजाइन में अधिक महत्त्वपूर्ण तत्व को अधिक स्थान दिया जाता है, तथा सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व को दृश्य बिन्दु के आस-पास रखना और उसमें आकर्षक रंगों का प्रयोग करना उचित रहता है, ताकि वह देखने वालों को आकर्षित कर सके और अपना संदेश सही तरीके से सम्प्रेषित कर सके। किसी भी डिजाइन में मुख्य चित्र (इलस्ट्रेशन) और मुख्य शीर्षक क्रमश: सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसलिए उनका आकार बड़ा और उनमें आकर्षक रंगों का प्रयोग किया जाता है। इसी क्रमानुसार सभी तत्तवों को जो एक डिजाइन में प्रयुक्त हुए हैं, उनके महत्त्व के अनुसार स्थान देना और रंगों का प्रयोग करना चाहिए। अन्तराल (रिक्त स्थान) डिजाइन में अनुपात को बनाये रखने में सहायक होता है।
3. विरोधाभास
विरोधाभास को सकारात्मक रूप में महत्त्व देना (Emphasis) या प्रभाविता (Dominence) भी कहा जाता है। यह उस तत्त्व या क्षेत्र की ओर ध्यानाकर्षण करता है जो सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। डिजाइन निर्माण की प्रक्रिया में यह निर्णय भी बहुत अहम् होता है कि डिजाइन के कौनसे प्रमुख तत्त्व (मुख्य शीर्षक, इलस्ट्रेशन, बॉडी कॉपी एवं लोगो टाइप आदि) को अधिक महत्त्व देना है या आकर्षण का केन्द्र बनाना है और सहायक तत्त्व के रूप में कौन-कौन से तत्त्वों को कितना गौण (Subordinate) रखा जाना है। गौणता (Subordination) द्वारा डिजाइनर कम महत्त्व के तटस्थ क्षेत्र का सृजन करता है जो देखने वाले को अधिक महत्त्व वाले तत्त्व (आकृति) से कम आकर्षक लगता है। महत्त्व देना, गौणता और निर्देशात्मक सामर्थ्य एक तरीका है जिसके द्वारा डिजाइनर एक डिजाइन के विभिन्न तत्त्वों की तरफ ध्यानाकर्षण की मात्रा और दृष्टि के अनुक्रम को नियंत्रित व सन्तुलित करता है। डिजाइन में किसी विशेष तत्त्व को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इस सिद्धान्त का प्रयोग किया जाता है ताकि वह तत्त्व पाठकों का ध्यानाकर्षण कर सके और संदेश को प्रभावी तरीके से पहुँचा सके। यह संयोजन को सजीवता प्रदान करता है तथा डिजाइन के प्रमुख तत्त्वों के महत्त्व को बढ़ाता है। डिजाइन में विरोधाभास के लिए रंग, पोत एवं आकृतियों का प्रयोग किया जाता है। विरोधाभास द्वारा डिजाइन के तत्त्वों को महत्त्वपूर्ण बनाया जाता है। इसके लिए डिजाइनर उस तत्त्व को जिसे अधिक महत्त्वपूर्ण रखना है उसे अलग दिशा, आकार व रंग में बनाता है, जैसे- हल्के रंगों के विपरीत गहरे रंगों का प्रयोग, श्याम-श्वेत चित्र या डिजाइन में एक तत्त्व या उस तत्त्व के किसी विशिष्ट भाग को रंगीन बनाना, आड़ी रेखाओं (आकृतियों) के ऊपर सीधी रेखाएँ (आकृतियाँ) बनाना आदि। इस प्रकार उस तत्त्व का महत्त्व बढ़ेगा । और उसका प्रभाव भी एक विशेष तत्त्व के रूप में अलग दिखाई देगा तथा वह अपना संदेश प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित करेगा जो अच्छे डिजाइन के लिए आवश्यक होता है।
विरोधाभास के अतिरिक्त डिजाइन के प्रमुख तत्त्व को महत्त्व देने के लिए उसे दृश्य बिन्दु के आस-पास रखा जाता है या तत्त्व को आकार में बड़ा बनाकर किसी तत्त्व की पुनरावृत्ति द्वारा उसमें गति का आभास पैदा किया जाता है जो उस तत्त्व को अन्य की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण बनाता है। इसके अतिरिक्त किसी भी तत्त्व को अधिक महत्त्वपूर्ण बनाने के लिए उसके चारों तरफ सूर्य के प्रकाश की तरह लाइनें (Radiation) डाली जा सकती हैं, उसमें तेज रंगों का प्रयोग किया जा सकता है, उसका आकार बड़ा बनाया जा सकता है, आदि।
4. लय और प्रवाह
इस सिद्धान्त में डिजाइनर दृश्य तत्त्वों द्वारा दृष्टि संचलन एक तर्कसंगत पथ बनाता है जो डिजाइन में सजीवता प्रदान करता है । इसके अभाव में डिजाइन में केवल शिल्पकारी ही शेष बचती है। लय और एकता दोनों एक दूसरे से सम्बद्ध होते हैं। एकता जहाँ सभी तत्त्वों को एक साथ रखती है, उन्हें क्रमानुसार संगठित करती है तथा अव्यवस्थित बनावट और फैलाव को रोकती है उसी प्रकार 'लय' डिजाइन में जीवन का आभास कराती है। सामान्यतः इसे सिद्धान्त में गति और अनुपात के संयोजन से गति की विविधता का प्रयोग किया जाता है। यह सिद्धान्त किसी वस्तु की ओर टकटकी लगा कर देखने की गति (Gaze Motion) का दिशात्मक सामर्थ्य है, जो पाठक की आँखों को आसानी से एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर इस प्रकार ले जाता है ताकि देखने वाला विज्ञापन के सभी तत्वों को देख सके और डिजाइन अपना संदेश प्रभावी ढंग से कह सके।
सामान्यत: जब हम किसी पृष्ठ को पढ़ते हैं तो ऊपर बायें कोने से प्रारम्भ करने के पश्चात् लाइन दर लाइन अन्त में ऊपर से नीचे दायें कोने पर पहुँचते हैं। डिजाइन के तत्त्वों का दोहराव (Repetition) भी डिजाइन में एकता, निरन्तरता, गति और महत्त्व प्रदान करता है। डिजाइन में रूपान्तरण (Formation) से सम्बन्धित तत्त्वों की नियमित पुनरावृत्ति के द्वारा लय का सृजन किया जाता है। जब हम बड़ी वस्तु से छोटी, रंगीन से रंगहीन वस्तु, हल्की से गहरी वस्तु की तरफ देखते हैं तो वह सामान्य दृष्टि संचालन होता है। डिजाइन में एक समान आकारों के दोहराव की श्रृंखला बनाकर उसमें रंगों की तान से, आकृति की क्रमबद्धता से तथा आकारों से क्रमानुसार छोटे से बड़े या बड़े से छोटे, मोटे से पतले, गोल से चौकोर या गहरे से हल्के तक ले जाने की प्रक्रिया द्वारा लय या दृष्टि संचालन बनाया जा सकता है।
इसी प्रकार रेखाओं व चिह्वों द्वारा भी डिजाइन में तर्कसंगत दृष्टि संचालन किया जाता है जिसे ज्यामितीय दृष्टि संचलन कहते हैं। इसके अतिरिक्त भी डिजाइन में प्रयुक्त मॉडल (इलस्ट्रेशन) की आँखों, हाथ-पैर, उसके द्वारा पहने हुए कपड़ों तथा उसके शरीर की भाव-भंगिमाओं द्वारा भी दृष्टि संचलन बनाया जाता है जिन्हें निर्देशात्मक ताकतें (Directional forces) या निर्देशात्मक सामर्थ्य कहा जाता है जो वास्तविक या आलिप्त रेखाओं द्वारा आँखों के अनुसरण के लिये एक पथ उपलब्ध करवाता है, जो डिजाइन में लय का कार्य करता है, जैसे- किसी मॉडल द्वारा वस्तु को डिजाइन में इस तरह देखना कि उस चित्र से बनने वाले भाव अपने आप ही देखने वाले की आँखों को मुख्य शीर्षक तथा मुख्य शीर्षक से अन्य तत्त्वों तक पहुँचा सकें। कभी-कभी मॉडल जिस तरफ देख रहा होता है उस तरफ किसी विशेष तत्त्व को रखने से भी दृष्टि संचलन बनाया जाता है जो उस तत्त्व के महत्त्व को बढ़ा देता है जिससे पढ़ने वाले का ध्यान उस तत्त्व पर पड़ता है और वह सम्पूर्ण डिजाइन को देखता है। लय का प्रमुख कार्य यह है कि डिजाइन में ऐसा कोई भी तत्त्व नहीं बचना चाहिए जिसको पाठक देख नहीं सके ताकि डिजाइन अपना संदेश प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित कर सके।
5. एकता
डिजाइन के तत्त्वों में एकता और सामजस्य आवश्यक होता है। डिजाइनर इसे सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त मानते हैं। डिजाइन में प्रयुक्त होने वाले प्रत्येक तत्त्व (मुख्य शीर्षक, उप-शीर्षक, बॉडी कापी, इलस्ट्रेशन, सहायक इलस्ट्रेशन, लोगो टाइप आदि) को सिद्धान्तों के अनुसार निर्धारित स्थान में इस तरह से संयोजित करना कि वे सभी तत्त्व एक संगठित इकाई के रूप में नजर आयें और सभी एक ही बात का समर्थन करें तभी डिजाइन में एकता संभव होती है। डिजाइन के सभी तत्त्वों में एकता बनाने के लिये टाइपोग्राफी, आकारों का दोहराव, को तत्त्व को एक - दूसरे के साथ जोड़ना, एक पैटर्न, रंगों तथा डिजाइन के चारों तरफ सीमा रेखा (बोर्डर लाइन) लगाकर भी विज्ञापन (डिजाइन) के तत्त्वों में एकता बनाई जाती है। डिजाइन में रिक्त स्थान (अन्तराल) का सही ढंग से किया गया प्रयोग भी एकता बनाने में सहायक होता है। सभी तत्त्वों की एकता और सामज्जस्य द्वारा कहा गया संदेश ज्यादा प्रभावी, महत्त्वपूर्ण और प्रोत्साहित करने वाला होता है।
डिजाइन में एकता के साथ-साथ विविधता (Variety) का होना भी महत्त्वपूर्ण होता है। एकता एक होने की स्थिति या शर्त है जबकि विविधता असादृश्य Diversity) उत्पन्न करती है। डिजाइन में एकता का प्रयोग यह अहसास कराने के लिये किया जाता है कि डिजाइन के सभी तत्त्व एक कार्य में एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा सम्पूर्ण को सामज्जस्यपूर्ण और सुसंगत बनाते हैं। विविधता परम् एकता को सन्तुलित करने ((Counter Balance) के रूप में कार्य करती है। यह एक जैसी आकृतियों की अत्यधिक एकरूपता के उबाऊपन और अनियन्त्रित विविधता की अव्यवस्था (आकारहीन ढेर) को कम करती है। डिजाइन में विविधता का अर्थ है उसमें प्रयुक्त आकृतियों, रंगों, पोत आदि में विविधता हो लेकिन सभी डिजाइनर द्वारा निश्चित किये गये विचार या विषय-वस्तु को एकरूप होकर संयुक्त रूप से प्रदर्शित करते हों जिससे डिजाइन का संदेश अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके।
0 Comments