सौंदर्य एवं कला
भारतीय साहित्य एवं साहित्य - शास्त्र में सौंदर्य का विशेष महत्व रहा है ! वैदिक साहित्य ग्रंथों में सौंदर्य शब्द की चर्चा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में होती रही है ! सौंदर्य को विविध ग्रंथों में रमणीयता, कमनीयता, शोभा, कान्ति, चमत्कार, रस आदि नामों से संबोधित किया जाता रहा है !
सौंदर्य शब्द का शाब्दिक अर्थ है सुंदर होने का भाव | मानव ने कला और सौंदर्य शब्दों का प्रयोग व्यापक रूप में किया है ! कला और सौंदर्य में मानवता के गुण विश्लेषण का लक्षण पाया जाता है ! सौंदर्य आंखो द्वारा किया
जाने वाला अनुभव है ! मानवता का पहला गुण विवेक द्वारा सौंदर्य को समझना है ! सौंदर्य एक भावना एवं एक मानसिक अवधारणा है, क्योंकि व्यक्ति की बुद्धि वस्तुओ के रूप के विशेषण के द्वारा सुंदर या कुरूप मानती है !
जब हम किसी वस्तु को देखते हैं तो हमारी बुद्धि द्वारा उस वस्तु के रूप - विशेषण से हमारे मन पर जो प्रभाव पड़ते हैं, उनमें एक प्रभाव सुंदरता का भी है जिसके आधार पर हम उस वस्तु को सुंदर कहते हैं और इसी सुंदरता के अनुभव के आधार पर हम वस्तु में निहित एक सामान्य सौंदर्य - गुण की कल्पना करते है।
इसलिए एक वस्तु किसी के लिए सुंदर है तो कोई दूसरा उसे कुरूप भी कहता है क्योंकि व्यक्तियों की रागात्मक ( प्रेम एवं ईर्ष्या )मानसिकता एवं विवेकपूर्ण विभिन्नताऐ होती है जिनके आधार पर व्यक्ति उस वस्तु का विश्लेषण करता है अर्थात मानव अपने विवेक से सौंदर्य को समझता है !
अंग्रेजी में सौंदर्य के वाचक के रूप में ब्यूटी (Beauty) शब्द का प्रयोग किया जाता है ! ब्यूटी शब्द Beau और ty का युग्म है जिसमें Beau का अर्थ प्रिय, रसिकता अथवा श्रृंगारी पुरुष है तथा ty भाव वाचक प्रत्यय है ! इस प्रकार बूटी का शाब्दिक अर्थ है सौंदर्य, मनोहरता, रमणीयता या रसिक भाव | सुंदरी का कार्य इंद्रियों को आनंद प्रदान करना है ! ग्रीक काल में बाह्य सुंदरता को अधिक महत्व दिया गया और सुंदर के लिए Beauty शब्द का प्रयोग किया गया ! सौंदर्य का संबंध सुंदरता की जागरूकता या कलाकार्य की उस गुणवत्ता या मानव निर्मित या प्राकृतिक स्वरूपो से है देखने वाले में उन्नत जानकारी की एक अनुभूति को उत्पन्न करते हैं ! सौंदर्य की परिधि में प्रकृति से लेकर मानव निर्मित पदार्थ तक सभी शामिल होते हैं जिनके आधार पर इसको दो भागों में वर्गीकृत किया गया जाता है - (i) प्राकृतिक सौंदर्य तथा (ii) मानव - निर्मित ( कृत्रिम ) सौंदर्य !
(i) प्राकृतिक सौंदर्य (Natural Beauty)
प्रकृति ईश्वरीय कृति है जिसकी गोद में पलकर मनुष्य बड़ा होता है ! प्रकृति ही मनुष्य में सौंदर्य - भावना का विकास करती है ! प्राकृतिक
सौंदर्य के भी दो भेद किए गए हैं - ( क ) सुंदर (Beautyful) और ( ख )उदात्त (Lofty)
( क ) सुंदर (Beautyful)
सामान्य आकार की वस्तुओ को देखकर उनके प्रति आकर्षण, माधुर्य, सम्मोहन और सुख की अनुभूति होती हो तो उन्हें सुंदर कहा जाता है ! यह अनुभूति दृश्यगत और बौद्धिक दोनों रूपों में हो सकती है यह अनुभूति दृश्य एवं
श्रव्य इंद्रियों से होती है ! व्यक्ति जिस वस्तु को देखता है यदि वह वस्तु की उसकी ऐन्द्रिक सवेंदनाओ को सुंदर लगती है तब वस्तु के प्रति उसके मन में आकर्षण उत्पन्न होता है, व्यक्ति उसकी समीपता प्राप्त करना चाहता है या उसे पास रखना चाहता है जिससे उसे सुख
की अनुभूति होती है ! यहीं से कला का प्रारंभ होता है ! कला में रूप - सौंदर्य भावात्मक विवेक की देन है !
( ख ) उदात्त ( विशाल ) (Lofty)
प्रकृति में विधमान विशाल आकार वाली वस्तुएं जैसे - पहाड़, समुंदर, आकाश आदि की विस्तृतता देखकर मनुष्य को अपनी
लघुता का आभास होता है और इन्हें देख कर वह लस्तपस्त हो जाता है लेकिन मनुष्य उन वस्तुओं के साथ तारतम्य का भाव जागृत करके एक विशालता और उच्चता अनुभव करने लगता है तो यह उदात्तता की अनुभूति है ! भारतीय परंपरा में प्रकृति सौंदर्य की देवी
है ! कलाकार और कवि इस से प्रेरणा प्राप्त करता है ! कला, संगीत, साहित्य का मौलिक सौंदर्य प्रकृतिगत सौंदर्य की अभिव्यक्ति ही है !
(ii) मानव - निर्मित ( कृत्रिम ) सौंदर्य (Artificial Beauty)
प्राकृतिक सौंदर्य की प्रेरणा से ही कृतिका विकास होता है प्रकृति में प्राप्त वस्तुओं का प्रयोग करते हुए मनुष्य विभिन्न प्रकार की सुंदर वस्तुओ का निर्माण करता है ! इनमें से कुछ वस्तुएं हमारी इंद्रियों को कुछ समय के लिए ही सुख देती है तो उन्हें शिल्प कहा जाता है ! दूसरी और प्रकृति से प्राप्त सामग्री श्रेष्ठ संयोजन ऐसे रूप में किया जाता है जो कलात्मक दृष्टि से अभिव्यंजनीय होते हैं तो वह कला कहलाती है ! कला में अनुभूति (Perception), अभिव्यक्ति (Expression) और रूप (Form) तीनों तत्व विस्तृत रूप मेंविधमान रहते हैं ! कला में अभिव्यक्ति को सृजन (Creation) कहा जाता है प्रकृति की रचनाओं वह रंगों से अनुभूति प्राप्त होती है अमूर्त अभिव्यक्ति अनुभूति प्राप्त होती है ! अमूर्त अनुभूति को मूर्त रूप प्रदान करना कला की अभिव्यक्ति है ! अभिव्यक्ति से रूप बनता है ! रूप बाह्य व आंतरिक दो प्रकार का होता है ! कला में बाह्य रूप की प्रधानता होती है ! बाह्य रूप का लावण्य आकर्षक होता है तो सौंदर्य को जन्म देता है ! उसी को कलात्मक सौंदर्य कहा जाता है !
कला और सौंदर्य के संदर्भ में भारतीय विचारको ने विभिन्न ग्रंथों में उसके सृजन पक्ष का वर्णन करते हुए कला के सौंदर्य पक्ष पर अप्रत्यक्ष रूप से अपने विचार प्रकट किए हैं ! वात्स्यान के कामसूत्र में सौंदर्य सृजन के लिए छः अंग आवश्यक माने गये हैं -
रूप भेद प्रमाणानि भाव लावण्य योजनम |
सादृश्य वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम ||
रूप - आकृति, प्रमाण - मान एवं अनुपात के अनुसार बनावट, भाव - आकृति की भाव भंगिमा, लावण्य - रूप निर्मित में सौंदर्य का समावेश, सादृश्य - मूल वस्तु से समानता, वर्णिका भंग - विभिन्न वर्णों का व्यवस्थित संयोजन !
भारतीय कला में सौंदर्य को कला का प्रमाण माना गया है और सौंदर्य परमानंद कहा गया है ! कला और सौंदर्य का हमेशा सहचरी संबंध रहा है, दोनों का अस्तित्व एक साथ ही है ! जिस कालकृति में सौंदर्य नहीं उसको कला के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता है ! कलाकार के सौंदर्यमयी सृजन को ही कला माना गया है ! इस प्रकार कला में रूप, भोग (Pleasure) और अभिव्यक्ति सौंदर्य के कारक है तथा ओज, माधुर्य और प्रसाद ( सरल - सुबोध ) यह तीन अभिव्यक्ति के गुण है ! माधुर्य का संबंध सुख अनुभूति से है और मानसिक दीप्ति (Brilliancy)ओज के द्वारा उत्पन्न होती है इस प्रकार सौंदर्य का सृजन संभव माना गया है लेकिन विस्तृत संदर्भ में कलात्मक सौंदर्य को सफल भावात्मक अभिव्यक्ति के नाम से ही जाना जाता है !
कला का चेतन माध्यम स्वयं कलाकार ही होता है इसलिए कलात्मक कार्य विषय - वस्तु आंतरिक चेतना और कलाकार के व्यक्तित्व का एक मिश्रित गुण होता है जिसमें रूप, भोग और अभिव्यक्ति की अनुभूति ही सौंदर्य आनंद है !
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