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कला और संप्रेषण (Art and Communication) (ग्राफ़िक डिज़ाइन Theory बिलकुल शुरू से Lesson - 1)

 


हमारा अधिकतर संप्रेषण व्यक्तिक होता है परंतु अभिव्यक्ति के माध्यम की अपनी सीमाएं होती हैं ! किसी भी विचार या अनुभूति को दृश्य स्वरूपों में भी संप्रेषित किया जाता रहा है ! कला संप्रेषण का ऐसा माध्यम है जो समाज के सभी वर्गों ( शिक्षित - अशिक्षित, बच्चे - बूढ़े, अमीर - गरीब, स्त्री - पुरुष आदि ) के लिए आदिम युग से वर्तमान तक प्रभावी रहा है ! आदिकाल से ही मानव ने संप्रेषण के लिए कला का प्रयोग किया है जिसका प्रमाण अफ्रीका व यूरोप से लेकर भारत की प्राचीन गुहा चित्रों से मिलता है ! जैसे - स्पेन में अल्तमिरा व फ्रांस में लास्का तथा भारत में मिर्जापुर व बांदा   ( उत्तर प्रदेश ), पंचमढ़ी, रायगढ़, होशंगाबाद, भोपाल, भीमबेटका ( मध्य प्रदेश ) आदि ! संभवत ये गुहा ( गुफा )  चित्र संदेश को प्रेषित प्रेषित संप्रेषित करने के लिए बनाए गए हैं थे जिनमें मुख्यत: पशु - पक्षियों एवं शिकार के दृश्य को चित्रित किया गया था जो उस समय की जरूरतों के अनुसार बनाए गए थे ! आदिकाल से संप्रेषण के लिए कला जितनी महत्वपूर्ण थी उसकी अपेक्षा वर्तमान वैज्ञानिक युग में भी संप्रेषण के लिए इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है और कला के विविध स्वरूपों का विकास हुआ है ! कला का कोई भी स्वरूप हो, जैसे - चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, व्यावहारिक कला नृत्य व संगीत आदि सभी किसी न किसी रूप में संप्रेषण का माध्यम रही है जिसमें स्थान एवं माध्यम तकनीकी विकास के साथ-साथ बदलते रहे हैं !

                                                            मूर्तिशिल्प      'रति एव कामदेव' 
                                                       पार्श्वनाथ मंदिर, खजुराहो, 10वी सदी 

सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के साथ गिरजाघरों मंदिरों एवं स्तूपो आदि का निर्माण हुआ जहां पर लोग धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निरंतर रूप से आने - जाने लगे ! इसलिए संप्रेक्षण के लिए इनका उपयोग किया जाने लगा ! भारत में मंदिरों ( कोणार्क, खजुराहो, देवगढ़, देलवाड़ा, महाबलीपुरम ) एलोरा व अजंता आदि की गुफाओं एवं स्तूपो ( साँची, भरहुत, अमरावती सारनाथ आदि )  में बनी मूर्तियां, तोरणद्वार स्तंभ एवं अलंकरण भी धर्म के प्रति लोगों के आकर्षण को बढ़ाने का कार्य कर धर्म के प्रति आस्था को बढ़ाने के लिए आपका संदेश संप्रेषित करते रहे हैं जो वर्तमान तक जारी है ! इसी प्रकार पश्चिम मैं भी गोथिक काल में  ( 1150 ई. से 1400 ई. तक )  फ्रांस, इंग्लैंड एवं स्पेन में ईसाई गिरजाघरों मैं बनाए गए भीति चित्र, मूर्तियां, स्तंभों पर बनी आकृतियां या रंगीन कांच ( स्टेन ग्लास ) की खिड़कियां आदि सभी का मुख्य उद्देश्य ईसाई धर्म को महिमा मंडित कर धर्म के प्रति लोगों को आकर्षित करना था ताकि इनके द्वारा जनसामान्य तक धर्म का संदेश पहुंचे और ईसाई धर्म के प्रति लोगों में विश्वास बढ़े जिसे एक प्रभावी संप्रेषण से ही किया जा सकता था जो कि इन गिरजाघरों मैं विद्वान है !


                                  रंगीन कांच की खिड़की     'रोज विंडो' कैथेड्रल, पेरिस, फ्रांस,1258 ई.

 15वी सदी में मुद्रण के आविष्कार के पश्चात संप्रेषण के लिए नए-नए माध्यम विकसित होने लगे जिनसे लोगों तक शिक्षा का विस्तार हुआ और कला के स्वरूप बदलते गए ! चित्रकार चित्र बनाने के लिए कागज व कपड़े का प्रमुखता से प्रयोग करने लगे ! कालीघाट ( कोलकाता ), ओडिशा एवं नाथद्वारा ( राजस्थान ) आदि स्थानों पर पट - चित्र बनाए गए जिनमें देवी-देवताओं के धार्मिक चित्र बनाए गए थे जो भी संप्रेषण के एक माध्यम के रूप में कार्य करते थे !

                                                  
                                                       कालीघाट चित्र, 'संगीतज्ञ'  1870 - 85 ई 

औद्योगिक विकास से उत्पन्न संप्रेषण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मुदित कला माध्यमों का विकास हुआ जिन में छापा कला, फोटोग्राफी एवं व्यवहारिक कला मुख्य रूप से उभर कर सामने आए तक डिजाइन जिसमें पुस्तक डिजाइन, पोस्टर समाचार - पत्र, पत्रिका डिजाइन एवं विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों का प्रयोग संप्रेषण के लिए किया जाने लगा इसमें नुओ कला ( अमेरिका व यूरोप ) के क्रोमोलिथोग्राफी से मुद्रित पोस्टर एवं विलियम मोरिश के "आर्ट एंड क्राफ्ट आंदोलन" ( इंग्लैंड ) की पुस्तक ने संप्रेषण के लिए कला को एक नया स्वरूप प्रदान किया और इस कला के जरिए लोगों के घरो, गलियों, दफ्तरों एवं कारखानों तक संदेश संप्रेषित होने लगे लगे ! संप्रेषण का यह सबसे लोकप्रिय एवं प्रभावी कला स्वरूप था जो वर्तमान तक प्रभावी एवं लोकप्रिय है !

                                    भीति चित्र 'बोद्धिसत्व पदमपाणि' अजंता, गुफा नं 1,  600 - 650 ई.

आधुनिक युग के चित्रकार व मूर्तिकार अपनी कलाकृतियों को कला दीर्घाओं में प्रदर्शित करने लगे थे !  चित्रकारो, मूर्तिकारो, फोटोग्राफरो व डिजाइनरो द्वारा बनाई गई कलाकृतियां सामाजिक परिवेश, राजनीतिक क्रांति, युद्ध औद्योगीकरण, पर्यावरण तथा अन्य सामाजिक सरोकारों से प्रभावित रही जिन्होंने जन-सामान्य तक अपना संदेश पहुंचाया और ये कलाकृतियां संप्रेषण का महत्वपूर्ण माध्यम बनी जिसने जनचेतना जागृत की हुई ! इस प्रकार कला के सभी स्वरूप आदिकाल से लेकर वर्तमान तक किसी ने किसी रूप  में संप्रेषण का एक मुख्य जरिया रहे हैं ! विद्वानों ने कला के उद्देश्यों एवं कार्यों की व्याख्या करते हुए भी कला को संप्रेषण का प्रभावी माध्यम माना है !

टॉलस्टॉय ने कहा है कि, "कला एक माध्यम है जिसके द्वारा मानव अपने विचारों को संप्रेषित करता है !" यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं है अपितु कला ही समाज को एक सूत्र में बांधकर विश्व - कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है कलाकार अपनी कृति में अपने भावों को अभिव्यक्ति करता है उन भावों को दूसरों तक पहुंचाना चाहता है और उन्हें उसमें शामिल करना चाहता है ! यह तभी संभव है जब कलाकार और कला - रसिक दोनों की एक समान अनुभूति हो ! एक समान अनुभूति होने पर स्वत: ही संप्रेषण स्थापित हो जाता है ! कला मानव - भावनाओं को एक सूत्र में बांधने का माध्यम है ! संप्रेषण हेतु उपयुक्त भावनाएं वही है जो साधारण और सार्वभौमिक हो, मानव - कल्याण से संबंधित हो ! कला हृदय की भावनाओं को रेखा, रंगो ध्वनि, शब्दों एवं शारीरिक भाव - भंगिमाओं द्वारा हृदय में पहुंचाने का माध्यम है ! कलाएं संप्रेषित करने के तरीके को अर्थ प्रदान करती है जो सामान्यतः मौखिक संप्रेषण से बहुत परे है इस प्रकार मानव से मानव में भावनाओं को संचारित करना ही कला है ! कुछ विद्वान इस विचार से सहमत नहीं है - वे कहते हैं की कला आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति है !

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