दृश्य कला ( Visual Art )
दृश्य कला विचारों को दृश्यआत्मक अभिव्यक्ति प्रदान करती है ! दृश्य कलाओं को रूपप्रद कला भी कहा जाता है ! क्योंकि इनका सृजन दृश्य रूप में किया जाता है ! यह केवल दिखाई ही देती है ! इस प्रकार कला एक विस्तृत क्षेत्र है जिसमें मुख्यत: दिव-आयामी और त्रिआयामी कला शामिल होती हैं ! कला कार्य "विचार" को दृश्य रूप में अभिव्यक्त करना या एक माध्यम ( रंग, लकड़ी,कागज, पत्थर एवं मिट्टी आदि ) का कुशलता से प्रयोग करके अभिव्यक्ति को आकार देना है ! कलाकार उस विशिष्ट मध्यम का चयन करता है ! जो उसकी अनुभूतियों एवं विचारों को दृश्य रूप में प्रस्तुत करने के लिए उपयुक्त होता है दृश्य कलाओं को सामान्यत: है विभिन्न भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है - चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तु कला, व्यवहारिक कला आदि ! इस ब्लॉग में मुख्यतः व्यवहारिक कला से संबंधित विषय पर ही लिखा गया है !
चित्रकला ( Painting )
किसी भी समतल धरातल, जैसे - कागज, कपड़ा, भित्ति एवं काष्ठफलक आदि पर रेखाओं तथा रंगो द्वारा लंबाई चौड़ाई गोलाई एवं ऊंचाई को अंकित कर किसी आकृति का सृजन करना चित्रकला है !
मूर्तिकला ( Sculpture )
किसी रुप या आकृति के सदृश ठोस वस्तु ( पत्थर, लकड़ी या धातु आदि ) से गढ़ी हुई आकृति ( कला ) जिसके तीनों आयामों को देखा जा सकता है, मूर्तिकला कहलाती है मूर्ति में लंबाई, चौड़ाई, मोटाई या ऊंचाई के परिमाप के तीन आयाम बनाते हैं !
वास्तु कला ( Architecture )
भवन निर्माण सामग्री ( पत्थर, चुना, ईटें ) आदि से निर्मित कला जैसे - मंदिर, स्तूप, दुर्ग एवं मकबरे आदि !
व्यवहारिक कला ( Applied Art )
यह कला व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति ( समाधान ) के लिए प्रतिदिन काम आने वाली भौतिकवादी वस्तु को एक कला रूप में प्रस्तुत करती है जिसमें वस्तु की सुंदर कलात्मक छवि के साथ उस वस्तु की कार्य अभिव्यक्ति भी समाहित होती है मूलत: व्यावहारिक कला एक उद्देशयात्मक कला है जिसमें व्यवहारिक रूप से उपयोगी डिजाइन तैयार कर उनका प्रयोग किया जाता है ! साधारण शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि व्यवहारिक कला किसी उद्देश्य को लेकर तैयार की गई कला है जो व्यक्ति के व्यावहारिक ज्ञान को प्रभावित करती है तथा यह जानकारी देती है कि उसके खाने-पीने पहनने एवं उपयोग के लिए कौन सी वस्तुएं उपयोगी एवं उपयुक्त हैं यह वस्तुएं प्रतिदिन की दिनचर्या में हमारे आस - पास होती हैं तथा हमारे सुख - साधनों को बढ़ाती हैं जैसे - सुबह जागने पर व्यक्ति कौन से टूथपेस्ट से दांत साफ करें, किस साबुन या शैंपू का प्रयोग नहाने के लिए करें, कपड़े कैसे पहने, नाश्ते में कौन से बिस्किट चाय या कॉफी का प्रयोग करें, कौन सी गाड़ी आने - जाने के लिए खरीदें आदि ! सार रूप में यह कहा जा सकता है कि "व्यवहारिक कला एक उद्देशयात्मक कला है जो वस्तुओं ( उत्पाद ) या सेवाओं की सूचना व बिक्री के लिए उन्हें ललित रूप ( चित्र चिन्ह एवं शब्द ) में प्रस्तुत करती हैं !"
पोस्टर डिज़ाइन ( Poster Design )
प्राचीन समय में अप्लाइड आर्ट ( व्यवहारिक कला ) के समानार्थी शब्द का प्रयोग विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के लिए किया जाता था, जैसे प्राचीन मिस्र में विलासिता की वस्तुओं के लिए, प्राचीन यूनान में खूबसूरत एवं आरामदायक वस्तुओं के लिए रिपब्लिक रोम में आडंबरहीन रुचिकर वस्तुओं को अप्लाइड आर्ट जैसे शब्द से चिन्हित किया जाता था ! मधयकाल में अप्लाइड आर्ट को पूर्णत: रचनात्मक, सटीक तरणात्मपरक और व्यवहारिक बनाया गया ! उतरकालीन सामंती समाज के समय इसका प्रयोग व्यवहारिक वस्तुओं के सजावटीपन और सरंचना के लिए किया गया ! पुनर्जागरण काल में अप्लाइड आर्ट में सौंदर्य और कार्य के एकत्व को विशिष्टता दी जाने लगी ! 19वी सदी में ब्रिटेन के विलियम मॉरिस तथा नुओ कल में जूल्सचैरट ने इस कला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था !
व्यवहारिक कला किसी भी राष्ट्र के उद्योगों एवं व्यापार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है, जैसे यह औद्योगिक उत्पाद के निर्माण में महत्वपूर्ण है वैसे ही व्यवहारिक कला की भूमिका उत्पादों के डिजाइन बनाने, विज्ञापन बनाने और उत्पाद की जानकारी देने एवं उन्हें बेचने में होती है !
व्यवहारिक कला का एक उद्देश्य संदेश को संप्रेषित करना भी होता है ! संदेश को संप्रेषित करने के लिए विभिन्न माध्यमों, जैसे - समाचार पत्र, पत्रिका, डायरेक्ट मेल, आउटडोर मीडिया, वेबसाइट आदि का प्रयोग किया जाता है ! संदेश को संप्रेषित करने के लिए जो 'डिजाइन' तैयार किए जाते हैं उन्हें 'ग्राफिक डिजाइन' कहा जाता है ! ये ग्राफिक डिजाइन व्यावहारिक कला का एक भाग होते हैं !
पत्रिका डिज़ाइन ( News Paper Ad. Design )
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